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संक्षिप्त हिंदी व्याकरण ( संशोधित संस्करण )
कामताप्रसाद गुरु
प्रका श के नागरीप्रचारिणी सभा, कार्शों
#“&४/६-»८७२२५०८६७४८/२४८२४ ८८4०७ ७८२८८ 6४८6 सोलहवीं बार ; १०००० प्रतियाँ ; संचत् २०१३ वि० मूल्य १॥)
&८६-७८६७८६०८६५८६०८६०८६५८६०८६००८६:०८६०८६५९८६०:८६०
सुद्रक--« महताब राय नागरी मुद्रण, कोशी
प्रथम संस्करण की भूमिका
ह पुस्तक “हिंदी-व्याकरण” का संक्षिप्त संस्करण है | इसकी रचना का प्रयोजन यह है कि हिंदी भोर अंगरेजी की उच्च कक्षार्थों के विद्या- थियो को हिंदी व्याकरण की उपयुक्त पाख्य पुस्तक उपलब्ध हो सके । इस ग्रंथ में संक्षेपतया प्रायः वे सन्च व्याकरण-विपय रखे गये हैं जो बड़े व्याकरण में हैं; पर विवाद-ग्रस्त त्रिया ओर उनका विवेचन निकाल दिया गया है। मुख्य विषय से संत्रंध रखनेवाली सूक्ष्म बातें भी इस पुस्तक में नहीं छाई गई | अपवाद भी यथासंभव कम रखे गए हैं। इस संक्षेप का फारण यह है कि व्याकरण विपयक विस्तृत अथवा सूक्ष्म वाद-विवाद बहुधा अपक्य बुद्धि वाले विद्याथियों की योग्यता के बाहर के विपय हैं । तथापि मूछ विषय का विवेचन अधिकांश में रीति से किया गया है कि विद्यार्थियो को नियम कंठ करने के स्थान में विचार करने का अवसरर मिले |
' इस विषय फी जो दो-चार पुस्तके इस समय पाठ्शालाओ में प्रच- छित हैं उनके दोषो से इस पुस्तक फो मुक्त रखने का भरसक प्रयत्न किया गया है; अर्थात् यह चेंष्टा फी गई है कि ग्रंथ में विषय की कमी, क्रम फा अभाव और भाषा फी अस्पष्टता न रहे | इस प्रयल में हमें कहां तक सफलता प्राप्त हुई है, इसका निर्णय अध्यांपफ और विद्यार्थी ही कर सकते हैं। यदि कोई सजन इस पुस्तक के दोषों फी सूचना देगे तो उस पर धन्यवादपूर्वक विचार किया जायगा और उसके अनुसार अगले संस्करण में आवश्यक परिवर्तत कर दिया जायगा । ,
कामतात्रसाद गुरु
संशोधित संस्करण की भूमिका
लगभग बीस बंप के उपयोग के पश्चात् इस पुस्तक के नये संस्करण की आवश्यकता प्रतीत हुई है | इस संह्करण में सचसे मुख्य ओर उपयोगी परिवर्तन यह फिया गया है कि विपय की विवेचना अधिकाशव में “शिक्षापद्धति? के अनुसार फी गई है | इससे मलविपय में कुछ फर्मी हो गई है; पर साथ ही कुछ नये भोर आवश्यक विपय भी जोड़ दिये गये हैं | उदाहरणों की संख्या भी बढ़ा दी गई है ओर प्रायः प्रत्येक पाठ के अंत में अभ्यास दे दिये गए हैं| संक्षेप के विचार से कुछ त्रिपय सारणी के रूप में लिखे गए हैं जोर एफ स्थान में भक्ति के द्वारा विपय समझाया गया है। ययासंभव टाइप की मिन्नता से मुख्य ओर गोणविषयों का अंतर सूचित फरने का प्रयत्न किया गया है। जाश्षा है कि पूर्वोक्त परिवर्तन, परिवद्धन और संशोधन से यह नवीन संस्करण प्रवेशिका-परीक्षाथियों को अधिक उपयोगी सिद्ध होगा | पुस्तक में छंद रस अर अलंकार का समावेश नहीं किया गया, क्योकि ये विपय
व्याकरण से नहीं प्रत्युत साहित्य से संबंध रखते हैं जो एक अलूण विषय है।
जन्नलपुर अश्षय तृतीया सं० २००६ | - कामताग्रसाद गुरु
पहछा पाठ
दुसरा ,,
पहछा पाठ दूसरा तीसरा चौथा याँचवॉँ -छठवॉ.
93
93
73
33
हि ।
विषय-सची
पहला अध्याय
घ
भाषा ओर व्याकरण
वाक्य शब्द और अक्षर व्याकरण और उनके विभाग
दूसरा अध्याय
वर्ण-विचार
वर्णमाला
स्वरों के भेद व्यंजनों के भेद संयुक्त अक्षर अक्षरों का उच्चारण
संधि
च्छ
श्र
/? ही
६
पहला पाठ दूधधा » तीसरा ,; चोथा ,, पॉचवों ,, 'छठवों ,, सातवां ,, आठवों ,, नवों. , दसवाँ ,,
पहला पाठ दूसरा
तीसरा चोंथा पॉचवों
79 99 92 49
छठवाँ ,,
संतों ,,
( २१ )
तोसरा अध्याय शब्द-विचार
शब्द सेद
संज्ञा के भेद
क्रिया के भेद
सर्वनाम के भेद
विशेषण के भेद
क्रिया-विशेषण के भेद
संबंध-सूचक के भेद
समुच्चयय-चोधघक के भेद
विस्मयादि-बोघक के भेद
एक शब्द के अनेफ शब्द-भेद चोथा अध्याय
शब्द-साधन
विकारी और अविकारी शब्द
संज्ञा का लिंग
संज्ञा का वचन
संज्ञा के कारक
संज्ञा की कारक रचना
सवनाम की कारक रचना
विशेषण का रूपांतर
९०४ 5१०६ १५५,
आठवों पाठ नवाँ. $ दवा ,, ग्यारहवों ,, बारहवाँ ,, तेरइवॉ ,, चोदहवाँ ,, पंद्रहवों ,,
पहला पाठ
दूसरा »
' तीसरा चोथा पॉचवाँ छठवॉ
7) 99 7)
9
पहला पाठ
दस है 2
)
( ह )
क्रिया का वाच्य ! क्रिया फा अर्थ क्रिया के फाल क्रिया के पुरुष, लिंग ओर[वचन कदंत्त क्रिया के काल रचना प्रेरणाथक क्रियाएँ संयुक्त क्रियाएँ
पाँचवाँ अध्याय
शब्द-रचना उपसग ह कुदंत ( अन्य शब्द ) तद्धित । समास पुनरुक्त ओर अनुकरण-वाचक
हिंदी भाषा का संक्षिप्त इतिहास छठवाँ अध्याय ' वाक्य-विन्यास
फारकों के अथ
फालो के अथ
इ्छ
' १२०
श्र्रे ११४ १२७ १३१ १३७ १४४ १५६
१६७ १७९१ १७४ श्द्रे श्व्यरे १६९५
श्द६ १९
(
पृष्ठ तीसरा पाठ शब्दों का अन्वय २०३ चौथा ,, शब्दों का क्रम २०७ पॉँचवाँ .,, शब्दों का छोप २०६ सातवाँ अध्याय वाक्य-एथक्करणु पहला पाठ वाक्य, उपवाक्य और वाक्यांश २१० दूसरा ,, साधारण वाक्य... ह २१२ तीसरा ,, संयुक्त वाक्य ह २१६ चौथा ,, मिश्र वाक्य ै श्स्श् पॉचवों ,, मिश्वि वाक्य २२७ छठवों ,, संकुचित वाक्य हर श्स्द सांतिवोँ ,, संक्तित्त वाक्य २३१
आँठवोँ अध्याय विराम-चिह परिशिष्ट--कविता की भाषा का संक्षिप्त व्याकरण २३६
संक्षिप्त हिदी व्याकरण
पहला अध्याय भाषा और व्याकरण पहला पाठ वाक्य, शब्द और अच्चर
र--मनुष्य विचार-शील प्राणी और संधति अथवा सूचना के छिए अपने विचार फो बोलकर या लिखकर दूसरों पर प्रकट फरता है। बह दूसरों के विचार भी सुना करता है। इन विचारों को पूर्णता तथा सष्टता से प्रकट करने का साधन भाषा है। कुछ विचार इशारों (संकेतों ) से भी प्रकट किए. जा सकते हैँ पर वे बहुधा अपूर्ण और स्पष्ट रहते हैं। भाषा अनेक पूर्ण और स्पष्ट विचारों के मेल से बनती
ओर प्रत्येक पूर्ण विचार में कई भावनाएँ रहती हैं। प्रत्येक पूर्ण विचार को वाक्य और प्रत्येक भावना फो शब्द कहते हैं।
२--वाक्य में कम से कम दो शब्द अवश्य होने चाहिएँ नहीं तो
पूरा बिचार प्रकट नहीं हो सकता | “राम आया” “तुम चछो” “वे
आवेंगे”, ये दो-दो शब्दों के वाक्य .हैं और इनसे एक एक परा विचार
प्रकट होता है | जहाँ एक ही शब्द से परा विचार ॥प्रकट हुआ दीखता
“हा दूसरा शब्द लुप्.( छिपा ) रहता है, जैसे प्रणाम 5 प्रणाम है । क्या-क्या है ? चलछो-नुम चलो |
( २ )
३--अपने विचार प्रकट करते समय हम या तो कोई समाचार सुनाते हैँ या प्रशन पछते है अथवा किसी से कुछ प्राथना करते है ।
इतना ही नहीं, हम इच्छा अथवा जाश्चय भी प्रकट करते है । इस
प्रकार हमारे विचार कई रूप घारण करते हैं और उनके अनुतार वाक्या के भी कई भेद होते हैं ।
अर्थ के अनसार वाक्य मुख्यतः पॉच प्रकार के होते हैं ।
(१ ) विधानाथंक वाक्य के द्वारा हम दूसरे को किसी बात की स्वीकृति वा निषेध फी सूचना देते हैं, जैसे, आम मीठा है। फल रात की पानी गिरा | भेरा भाई काशी से जावेगा । हम वहाँ नहीं थे । घर में कोई नहीं है ।
(२) प्रशनाथक वाक्य के द्वारा प्रश्न किया जाता है, जैते राम
हाँ है ? क्या तुम मेरे साथ चलोगे १ मोहन कच भाया था )
(३ ) आज्ञाथक वाक्य से आज्ञा, अनुमति अथवा प्रार्थना का त्रोध दाता दे, जैसे, जाओ । मुझे भाने दीजिए ।
(४७ ) इच्छात्रीधथक वाक्य से इच्छा, आशीवाद अथवा श्ञाप का त्राध होता हे, जैसे नाथ | मेरा बेटा ,सुझे मिछ जावें। ईश्वर उसका भत्ता करें | अन्यायी का नाश हो !
(५ ) विस्मयादि-बोधक वाक्य विस्मय, हर्ष, शोक आदि भाव सूचित करता ईद; जैसे, यह चित्र कितना सुंदर हे | भाई तुम मुझे कई वर्षों में मिले दो ! वह मित्र के जिना रहेगा !
४-वाक्य के साथंफ खण्ड करने से शब्द मिलते हैं। यदि शब्द 5 भी खण्द करें तो हर्मं एक वा अधिक छोटी से छोटी ध्वनि मिलेगी, जैसे, जानी? में जक जा + जो, मोहन? में म + जो + ह+न
$ हजरकोर ... खन्न-डई श््डू | ली कक !
ए | प्रत्येक छोटी से छोटी ध्वनि को अक्षर कहते हैं एज वा आंधिक अक्षर के मेल से शब्द बनता दै। जैसे, न, नहीं
कार भाप बाक्यों से, वाक्य शब्दों से मोर शब्द
र्श बड़
करा ध्ञ
हे. जय स
+
४ हलक लो ।
प्
न्ये
है ] स्वयं स्व्म्स्यूं बट हि. के है । कज्न्जी हि हि |)! 2५
तल
( रे)
फिसी भी भाषा का अध्ययन करने के लिए हमें उसके शब्दों ओर
वार्क्यों के रूपों तथा जर्थों का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए | अभ्यास
१--नीचे लिखे वाक्यों के शब्दों को अलग लिखो---
पानी चरसता है | गाय घास नहीं खाती थी। क्या उसका भाई कूल आयेगा ! प्रेमलता कैसी अच्छी लड़की है ! इंश्वर ने मनुष्य को बुद्धि दी है। आत्मा अमर है। सच बोलना धर्म फा काय है। राजा ने ' अकाल में प्रजा का पालन किया होगा | हिंदुस्तान बहुत बड़ा देश है। हमें अपने देश की उन्नति करना चाहिए । | ह
२--नीचे लिखे शब्दों का उपयोग फरके एक-एक प्रकार का वाक्य . बनाओ-- ।
दूध, हवा, गाना, ईश्वर, प्रेम, साइस, बड़ा, गया, भोजन, विद्या, कैसे, हाय ! हु
, ३--नीचे लिखे शब्दों के अक्षर फो अलग-अलग लिखों--
पानी, हवा, भोजन, साइस, दूध, गाना । |
४--नीचे लिखे अक्षरों से अछग-अभलग शब्द बनाओभों और उसका उपयोग एक-एक वाक्यो में $करो--
न, म, आा, ई, क, छ, म, ऊ, ए भ, ध |
दूसरा पाठ
व्याकरण ओर उसके विभाग --किसी भाषा के अक्षरों, शब्दों और वाक्यो के रूपों मौर अर्थों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए. इमें उस माषा का व्याकरण पढ़ना चाहिए. | व्याकरण वह विद्या हैं जिससे हम भाषा--अर्थात् अक्षर, शब्द और ,वाक्य--की शुद्धता के नियम सीखते हैं। प्रत्येक भाषा का व्याकरण होता है और उसमें उस भाषा फी झुद्धता के नियम दिए.
[ ४
करी
ज्न्च्प कु 9०२3 छा बीवी“ यही अउना डा ला ६ 5७-क अत, ०० पिया सो दसर भाषा घीख हक रहते हैं | वाद इंदछध सी सातु-भाया के ठद्दा कोई दुसरां भाया छाल कक कक च्ज्यु से ली अहम निकल 420.
चाह हां इन उस लादा का व्याकरण सांखना चाहइए |
कक भा 37 नकल ० अर द्ुडठ झओोर बज ब्द्वां प्लदा
६०-च्चछाएा के सुड--सलक्ष जद आभार दाक्वब-- कहां अंलका>शकंलरा 2 विवेचन शक 2. चप2० कक. जल मन अर 3०] ख्य न है. दाग ५ गए ह् चेद्खन करने के छिए व्याक्रम का छघुख्य दान विन कए गई ए--
( ३ ) वाक््य-विन्यास--ब्याकरण ऊ परस्पर सदंब कोर उनसे वाक्य बनाने
दूसरा >ध्याय : बण विचार पहला पाठ
ए | वणमाला/ ९ ८ ७--किसी भाषा के अक्षरों के समूह को वुमाला कहते हैं । हिंदी वर्णमाला में नीचे लिखे ४४ अक्षर हैं-- .. स्वर अं, भा, ३, इ, उ, ऊ, ०५ ऐं, भो, आओ । ये ग्यारह अक्षर# स्वर कहलाते हैं; क्योकि इनका उच्चारण सॉस के द्वारा स्वतंत्रता से होता है। ( उच्चारण करके देखो ) व व्यज़न क, ख, ग। घ, ढ | च, छ, ज, झ, अ | ट, ठ, ड, ढ, ण । त, थ, द, ध, न | प, फ, बे; भ, मै य; र, ले, व, शे, पष, स, हू इन तैंतीस अक्षरों फो व्यंजन कहते हैं, क्योंकि इनका उच्चारण साँस के साथ स्वतंत्रता से नहीं होता ओर इनके उच्चारण में स्वर की सहायता ली जाती है । ४ . जब हम 'क! का उच्चारण करते हैँ तब साँस बाहर निफालने के पहले हमें गले को कुछ दबाना पड़ता है ओर/फिर सॉस के साथ “अर? का उच्चारण
[
/*# संस्कृत वर्णमाला में एक और स्वर क हैं जो हिंदी में नही आता।
( ५६ )
करना पड़ता है। इसी प्रकार 'ठ? के उच्चारण में दोनो ओठ मिलाकर खोलने पड़ते हैं। और फिर “अ' का उच्चारण कर सॉस को नाकसे निकालना पड़ता है। (“कम”) शब्द में दोनों का (उच्चारण करके देखो |)
८--इनके सिचा अनुस्वार ( *) मर विसर्ग (४) नाम के दो व्यंजन और है. नजिनका उच्चारण क्रमशः आये मूं और आधेद के समान होता है ओर जो किसी भी स्वर के पीछे जाते हैं; जैसे 'संतार? और “दुःख में ।
९--जब फिसी स्वर का उच्चारण नासिका से होता है तब उसके ऊपर अनुनासिक-चिह्न ( ) छगाया जाता है, जिसे चंद्रविदु भी कहते है; जैसे, हँसना? और “गाँव” में।
व्यंजनों मे 5, ज; ण कभी शब्दों के आदि में नहीं आते |
१०--जब किसी व्यंजन में स्वर नहीं मिला रहता तब उसके नीचे एक तिरछी रेखा ( _) कर देते हूं जिसे इत्त कहते हैं ओर वह व्यंजन' हलंत कहत्थता है, जैसे पुनर , उत् ।
११--नीचे छिंखे अक्षरों के दो-दो रूप पाए जाते हैं; जैसे, अ अर; झ, झा; ण) णु | किसी अक्षर के नाम के साथ” पकार!' जोड़ देने से वही अक्षर समझा जाता है, जैसे, अफार-भ, मकारच्न्म |
अभ्याक्त
१--नीचे लिखे शब्दो में स्वर मौर व्यंजन बताओ---
आग, नार, ईश, ऐन, औषध, कंस, छः, उदय, ततूपर, भैवर, ऊँट, भॉँच |
दसरा! पाठ खरों के भेद १२--भ, इ, उ और ऋ हस्व स्वर कहलाते हैं, क्योकि इनके उच्चारण में सत्रसे कम समय छगता है। भा, ई और ऊ, को दीघ स्वर कहते हैं, क्योकि इनका उच्चारण करने में हृस्व स्वर से वूना समय लगता है और हस्व स्वरो के मेछ से बनते है, जैसे...
( ७ 9)
अकभन्यथा इ+इज-ई उक+डउठनजऊक। १३--ए, ऐ, ओ ओर ओ संयुक्त स्वर कहलाते हैं, क्योकि ये दो भिन्न-मिन्न ख्रो के मेल से बनते हैं; जैसे, 'ए>भ+इ, ई ऐन्भ+ए ओज्मभ-+उ, ऊ ओऔर्भ+ओ “अं संयुक्त स्व॒रो का उच्चारण भी दी स्वरों के समान दूने समय में होता दे । अ और आ सवर्ण स्वर कहलाते हैं, क्योकि इन दोनों का उच्चारण एक ही प्रकार से होता है। इसी प्रकार इ और ई, उ और ऊ, तथा . ऋ और ऋ में प्रत्येक जोड़ा सबर्ण है। ए औभौर ऐ. तथा यो और ओ सवर्ण स्वर नहीं है, क्योंकि ये भिन्न-भिन्न स्परों के मेल से बने हैं । इसी प्रकार अ आ और ई; और ऊ; अथवा इ ओर उ असवण् हैं। १४-“जिन स्व॒रों का उच्चारण नासिका से होता है, उन्हें सालु- 'नासिक और जिन ख्रों का उच्चारण सॉस के द्वारा स्वतंत्रता से होता है, उन्हे अनुनासिक कहते हैं; जैसे, “आँख! और ऊँटो तथा “आग ओर “ऊख! में । ु | अभ्यास नीचे छिखे शब्दों में स्व॒रों के भेद बताओ-- अलछूग, अंवेरा, ऐसा, आम; ऊँट, आधा, ईश, ऋण, इंट, इतन', उतना, ओला | ह २---नीचे लिखे स्व॒रों के जोडे सवर्ण हैं या असवर्ण ! भ भौर भा; इ और ई, अ,और ऊ; भ ओर ए; ए ओोर ऐ; भो ओर भऔौ; भ और ओ; इ ओर ज् । 0
( छ )?)
तीसरा पाठ व्यंजनों के भेद " १०७७“ से लेकर 'म? तक जो पचीस व्यंजन हैं उन्हें स्पश हक हैं क्योंकि उनके उच्चारण में जीम का कोई न फोई भाग मुख्य के दूस' भागो को स्पर्श करता ( छता ) है। ( उच्चारण करके देखो )। १६०--स्पश व्यजनो के पाँच वर्ग किए गए. हैं _आओर प्रत्येक वग की नाम पहले क्षक्षर से रखा गया है; जैसे, ' कवर्ग--क, ख, गं। घ, झ | चवर्गं>-च, छ, ज, झ, ज। खर्ग--25, ठ, ड, ढ, ण । तबरगं--त, थ, द, ध, न । पंबंग>->प, पं: ब कं भे । ह १७--य* 'र? 'छ? और “व! को अंतस्थ व्यंजन कहते हैं क्योकि उनका उच्चारण स्वरों ओर व्यंजनों के बीछ का है | (उच्चारण करके देखो ।) “४५ १८--श) “'प), 'स), और #$! ऊष्म व्यंजन कहलाते हैं क्योकि इनके उच्चारण में एक प्रकार की सुरसुराहट सी होती है। € उच्चारण फरके देखे। | ) हे १६--प्रंत्येक वर्ग के पिछले तीन व्यंजन अंतस्थ मोर हु को धोष वर्ग कहते हैं, क्योकि इनके उच्चारण में एक प्रकार की झनझनाहट सुनाई पड़ती है। इन्हें झूदु व्यंजन कहते हैं | २०--प्रत्येक वग के -पहले दो अक्षर भोर श, ष, स अघोष व्यंजन कदइलाते हैं क्योंकि इनके उच्चारण में एक प्रकार फी खरखराइट सी जान पड़ती है| इन्हें कठोर व्यंजन भी कहते हैं । घोष--ग, थे, 5, हज, श, जे, ड, 6, णग, द, ध, न वे, भे, म। य, र, छ, व, ६ | अधीप-क, ख; च, छ; ट, ठ; त, थ; प, फ; व, थ, स ।#५ २१--प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पाँचवोँ अक्षर और अतत्य अव्पप्राण कहछाते हैँ | क्योकि इनके उच्चारण में श्वास का
क्र
( ६ )
. परिमाण साधारण रहता है | शेष-व्यंजन महाप्राण कहलाते हैं, क्योकि:
उनका उच्चारण करने में साँस अधिक प्रमाण में निकाली जाती है । सूचना--सत्र स्वर घोष अव्पप्राण हैं। २२--प्रत्येक वर्ग के पाँचवें अक्षर, अर्थात् “डर, 'ज्र, ण!, न ओर 'म' को अनुनासिक व्यंजन कहते हैं, क्योकि इनका उच्चारण नासिक्का से होता है। इनके बदले इच्छानुसार अनुस्वार' लिखा जा
- सकता है; जेसे,
गद्भा? > 'गंगा?; पशञ्च!ः 5 पंच, “दण्ड” ८ “दुड' प्सन्त? > 'संत', _
५ (क्रम्प्! 5: कप? |
वअभ्यास्त १--नीचे छिखे शव्दो में व्यंजनो के भेद बताओ-.. समर, लहर, शहर, वन, रावण, उदय; चपल, छाया, साहस; पुर्ष, उदास, खर, झरना, कंगाल, संमान |
ह चौथा पाठ संयुक्त अक्षर
(१) खरों का संयोग . ० व्यंजनों का उच्चारण स्रो के योग के बिना नहीं हो सकता;
इसलिये व्यंजनों में स्वर॒मिलाए, जाते हैं। व्यंजनों में मिलने के पहले
खरों का-रूप बदछ जाता है और इस. बदले रूप को मात्रा कहते हैं। प्रश्येक स्वर की मात्रा नीचे लिखी जाती है-... जैं, आा, इ, ्, उ, ऊ; कक, कू, ए. ऐ ञओ, ओो |
८ अल 5 न 0० को
डे
$
2 5५ २४--“अ? को अछग मात्रा नही है। उसके प्रिलने पर व्यंजन का हल चिह ( . ) निकल जाता है; जैते क््+गभकन के, चू+भ-च।', २५--व्यंजनों में मात्राएँ मिलाने की रीति यह हे--.. हे फ़ का, फी, कु, कू, छ; क्, के, के, को, को । र्
( १० )
४? सें 'उ” और 'ऊ' की मात्राएँ मिलाने से उनका रूप कुछ बदल जाता है; जैसे, 'हकना? ओर 'रूप? में ।
(२ ) व्यंजनों का संयोग
२६--जब किसी व्यंजन में स्वर नहीं रहता तब्र वह अपने आगे आनेवाले व्यंजन में मिल जाता है; जैसे,
सत् + कार-सत्कार, सम् + बंघ-- संबंध ( संबंध ) |
सू०-हिंदी में बहुधा तीन व्यंजनों से अधिक एक साथ नहीं मिलते।
२७--जिन अक्षरों में पाई (।) रहती है उनकी पाई संयोग में गिर जाती है; जैसे, तू + थरूत्य, प्+यरूप्य, च्+ छ्ूूछ, तू-ः सू+य>त्स्य € मत्स्य! में ) ।
२८--७, छ, 2, ठ, ड, ढ और ह संयोग आदि में भी पूरे लिखे जाते हैं ओर भागे आनेवाला व्यंजन इनके नीचे लिखा जाता है; जैपे,
- सक्छ??, “उछ्वास??, “पद्टी?, “गड़ी? और “चिह्न” में । २६--जघ र के पीछे कोई व्यंजन आता है तब वह उसके ऊपर “शक ) के रूप में छिखा जाता है; जैसे, “दुगु ण”, “निर्जन”, “धर्म!
में । जब रकार किसी व्यंजन के पीछे आता है ततब्र उसके दो रूप होते हैं,
(१ ) पाइईवाले अश्षलरो के साथ र इस (- ) रूप में मिलता है, जैसे, “चक्र? ?, “हस्व?, “बज?! में ।
(२) दूसरे व्यंजनो के साथ र_इस रूप (| ) में भाता है; जैसे, “राष्ट्र??, #पु'द्ध?? “कुच्छ में |
सू०--( १० र के पश्चात् अह्व ( स्वर ) भाने पर भी बह रेफ के रूप में आता है, जेसे नऋत्य' में ।
( हे ) ब्रजभापा में २+य का रथ द्वोता है; जैसे, “मारयो??, “हारयो”??, *घारदयो”? में | !
कई एक सपयुक्त व्यंजन दो-दो रूपो में छिखे जाते हैं, क--क क्क, कक, घ् + व-प्व, छ, +ल-छ, श् +- व>इव, श्र, कू+तमक्त, क्त और तू+त >त्त, त्त।
बन
११ )
रे र२०-क्ष,त्र ओर ज्ञ संयुक्त व्यंजन हैं। कू+प-क्ष; त+र-न्र र जु+ज>ज। ये अक्षर भी दो-दो रूपो में छिखे हैं जाते हैं; जैसे, क्ञ॒ओर क्ष, त्रगौर ल; जञ्ञ कौर ज्ञ रणअजू,ण्,न्, अपने ही वर्ग के व्यंजनों के साथ मिल सकते हैं; जैसे, “गड़? “प्चञ्ञठ!?, “घण्टा?? “८ अन्त?, “दम्भ” | कुछ शब्दो में इस नियम का विरोध होता है; जैछे, #वाडमय??, द मृण्मय!!, “धघन्वन्तरि??, “सम्राद??,, तुम्हे” ह। | २९--अंतस्थ अक्षरों के पहले, अनुनासिक व्यंजन के बदले अनु- सवार जाता है, जेसे, “संयम”? “संरक्षा??, “संल्य?? “किंवा?? रैरे है बहुघा दूसरे व्यंजनों में मिलता है; दूसरे व्यंजन ह? में | मिलते; जैसे ; “चिह्न, “असह्य”', “हत्व”, “प्रह्मद??, “बिहुल?? । | ४ ३४--दो महाप्राण व्यंजनों का उच्चारण एक साथ नहीं होता; , इसलिये संयोग में पहला अक्षर अव्पप्राण रहता है; जैछे, “रक््खो?? “अच्छा??, “गट्ढः?, में । । २४--संयुक्त व्यंजनों में भी स्वरो की मात्राएँ जोड़ी जाती हैं; जैसे, ह, दवा, द्वि, 8 8. $ 5७% दें, दे; ढ्वो, हो.। |
अभ्यास : ः १--नीचे छिखे शब्दों में व्यंनन और स्वर मलछग-अरूग बताओ- दास, कवि, पुरुष, गति, भालू, जैता, कृष्ण, कौन । ५. '२--नीचे छिखे शब्दों में संयुक्त व्यंजनों के खंड' करो । कुत्ता, पत्थर, अन्न, मत्स्य, विद्यार्थी, स्रीत्व, ब्रह्म, नम्न, धर्म; मारथो, ईश्वर, क्लेश । ््््ि ३--नीचे छिखे शब्द को शुद्ध करो--. हा ५ गन्गा, चन्चछ, सण्त, कछूप, घण्टा, सम्मत, संसार, ठंड, चिह्न, . अझ्षण, गड़ढा।
६ १९: )
पाँचवा पाठ अरचों का उच्चारण
रजत इनकम थ.दा.०१० ०० पा; 2५१९ धार3४32७पभा+2७७७०ल्मा एक गए. ५४ ५भभाकाए५+वा० ७५ वाव९9५५३५श ७9५०4 +५५५५-५५४७७००ह ५! वछ्रशक७४3 ३3५७ भा ५७ फारतपन्य++»3+सकााका5/ मना आना पाक रथ + पका कम वाद काका
सक्षर उच्चारण स्थान सं अ, आ, कवग, ह, और: कुंठ कंख्य इ्ट, इं, जवगं, चमभोरश तालु तालव्य, ऋ, ऋ ट्वर्ग, र ओर प मूद्धा मद्धन्य (ताल का । ऊररी भाग ) | तबगं, छ ओर स दंत दंत्य उ, ऊ ओर पवर्ग ओष्ठ , | ओषछ्ठच ढ, अ, ण, न ओर म नासिका ! अनुनासिक ए्, ऐ, कंठ +ताल कंठ-ताल्व्य आओ, ओ कंठ + ओष्ठ कंठोष्ख्य द दंत + ऑंछ दंतोष्ख्य
२६--हिदी में अंत्य “अ? का उच्चारण बहुधा हलंत व्यंजन के- समान होता है; जेसे, (रण?, 'घधन?, “कमल? में | नीचें लिखी अवस्थाओं में अंत्य अ का उच्चारण पूरा होता है--
(१ ) यदि अकारांत शब्द का अंत्याक्षर संयुक्त हो जैसे, सत्य, इंद्र, गुरुत्व में | |
( र् ) याद इ, ड;
वाऊ क़े भागे य हों, जैठे, प्रिय, सीय, राजपत में |
( ३ ) पद्म में जिस अकारात शब्द पर विश्राम नहीं होता, जैसे राम चल बन प्राण न जाहीं | केहि सुब्र छागि रहत मर्न माही ।”
२७--दिन्दी में 'ए! ओर “ओों? का उच्चारण संस्कृत की अपेक्षा कुछ हस्व होता है; जैसे,
( १३ )
संस्कृत--ऐश्वयं, सदैव, कोतुक, पौत्र |
हिंदी-- ऐसा, केसा, फोन, चों या ।
श्णय--ड? और “ढ? का एक एक उच्चारण और है जो जीम का अग्रमाग उलट कर मूर्दधां पर लगाने से होता है; जैसे, बड़ और गढ़ में | इस उच्चारण को ट्िस्प्रष्ट कहते हैं ओर इसके लिये अक्षर के नीचे बिंदी लगाते हैं ।
उदूं और अँग्रेजी के प्रभाव में. 'ज” झोर “फ! के नीचे बिंदियाँ लगाकर इन अक्षरों का उच्चारण क्रमशः दंत-ताल्व्य और दंतोष्छ्य करते हैं; जेसे, ज़मीन, स्वेज़्, फुरसत और फ़ीस में |
३९--अनुस्वार ( ) ओर चंद्रबिंदु () के उच्चारण में यह अंतर है, कि अनुस्वार के उच्चारण में सॉस मुख ओर नासिका से निकलती है, पर चद्रबिंदु के उच्चारण में वह नाक से निकाली जाती है
जैसे 'हंसी? और 'हँसी?, “अंकुश! और “अंकुश? में ।
' ४०--विसग के उच्चारण मे साँस को कुछ झटका सा देकर मुँह से निकालते हैं । यदि इसके बाद व्यजन जाता है तो इसके उच्चारण में प्रायः उस व्यंजन का उच्चारण होता है, जैठे, दुःख” और प्रातः- _ काल), में |
४१--हिंदी में 'ज्ञ! का उच्चारण “गयं? के सहृश होता है। महा- राष्ट्र लोग इसका उच्चारण “तं? के समान करते हैं। पर इसका शुद्ध उच्चारण 'ज्यः के सहश है ।
४१--संयुक्त व्यंजन के पूव आए हुए ह॒स्व स्वर का उच्चारण कुछ , झठके के साथ होता है, जैसे, सत्य, नष्ट, अंत में । ।
हिंदी में मह, नह, हा आदि के पूर्व ऐसा उच्चारण नहीं होता; जैसे, तुम्हारा, उन्हें, करया, कह्या में ।
अम्याप्त
१--नीचे लिखे शब्दो के प्रत्येक अक्षर का अछग उच्चारण कर
उसका उच्चारण स्थान और भेद बताओों--
को,
बालक, फोन, अंतर देव, धन, बढ़ाई, बढ़ना, जहाज, फुरसत, संदेश, संदेशा; घनश्याम ।
समाचार जब्र छछमन पाए | ब्याकुंड बदन विलखि उठि धाए |
:. छठां पाठ
साथ राम + अवतार ८ रामावतार अ-]- अनआा जगत् -+ ईशजजगदीश त्+ई> दी मनः+-हर"०मनोहर :+इच्भोी-+-ह
४३--ऊपर लिखे शब्द संस्कृत भाषा के हैं। पर हिंदी में उनका प्रचार है। इन शब्दो के खंडो में पहले खंड का अंत्याक्षर दूसरे खंड के आद्यक्षर से मिल गया है ओर दोनों के मेल से एक भिन्न अक्षर बन गया है | संस्कृत में अक्षर के इस प्रकार के मेल को संधि कहते हैं ।
राम -)- अवतार-रामावतार अञ+कः अन्यआा
इंडश्वर+-इच्छा ८ ईश्वरेच्छा अ+इनए
भानु + उदय » भानूदय उ+उनच्ऊक
४४--इन उदाहरणों में म+- भ मिलकर भा, अ+इ मिलकर
ए. ओर उ+ठ मिलकर ऊ हुआ है। ये सब्र अक्षर स्वर हैं, इसलिये इनके मेल को स्व॒र-संधि कहते हैं।
वाक् +- ईश + वागीश क्+ईन्गी
जगतू + ईश-जगदीश त्+ई-दी
उत् + चारण > उच्चारण त्+चान्चा * जगत ऊू नाथ » जगन्नाथ तूकनान्ना
'४४-०-इन उदाहरणो में अंत्य व्यजनों के साथ स्वर अथवा व्यंजन मिले हैं ओर उनके स्थान में भिन्न अक्षर हो गए हैं। जिस संधि में व्यंजन के साथ स्वर अथवा व्यंजन मिलता है उसे व्यंज़न-संधि फिट |
2॥/ /र
( १५ )
नि+ भाशा ८ निराशा | दुः + उपयोग & दुरुपयोग
(5: -++- अबच्ूरा ( ;+-+-उच रू ) , निः:-- फल ८ निष्फल प्राय+-- चित्तःप्राय थ्रित्त - (;++फ-ष्फ ) ह (:+ चिलश्नि )
४६--उपर के उदाहरण में विसर्ग के साथ स्वर अथवा व्यंजन मिले हैं। ओर उनके स्थान में भिन्न अक्षर आाया है| विसर्ग के साथ स्वर अथवा व्यंजन के मेल को विसर्ग संधि कहते हैं । स्वर-पंधि १--विसगे
उदाहरण , संधि , नियम
राम + अवतार--रामवबतार | अ+भअच्भा | अफार वा आऊझार के राम भार -- रामाधार अ--आजूआ | परे अफकार वा आकार माया + अधीन--मायाधीन | आ+अच्ज्भा | हो तो उनके स्थान में माया + आचरण>-मायाचरण।/ आ+आजभा | आकार होता है।,
गिरि + इंद्र-गिरींद्र इ + इप्न्ई इवाई के परेइ वा गिरि + इंश-गिरीश ४ -+ ई-ई ई रहे तो दोनो के स्थान ' ! मही-+इंद्र-महींद्र | ईकइऋई में ई होता है । '_मही +ईंश>"महीश ई+ ई--ई भानु + उदय>-भानू्दय | .उ+ उच्ऊ उ वा ऊ के पश्चात् लघु + ऊम्मि-लघूर्मि उ-+ऊच्ऊक |उ वा ऊ भावे तो वधू + उत्सव-वधूत्सव ऊं+उम्ज्ऊ | दोनों मिलकर ऊ हो भू +“ऊध्व-सभूर्थ्व भू+ऊच्च-्भूध्ध॑ (ऊ+ऊच्ऊ, /जातेहैं।.._. ... पितृ + ऋण पतृण ऋ+ कर |) ऋवाऋ के पश्चात् ऋ वा हे | वा पितृण | ऋवा कक . ऋ आावे तो उनके स्थानम मातृ + ऋणन-मातृण द विद वात होता है। हिंदी में ___... वा मातृण ऐसे शब्द कम आाते हैं| ण |. | ऐसे शब्द कम आते हैं।
_ सव्ण हस्व या दीघ स्वरों के मिलने से उनके स्थान में सवर्ण दीघ स्वर होता है | ऐसी संधि फो दीर्घ कहते हैं। |
उदाहरण
सुर -+ इंद्र-ससुरे द्र सुर + इंश-सुरेश महा + इंद्र-महेद्र महा -- ईश>-महेश
दर + उपकारन्यरोपकार | थ उ-ज अब था | मे उपकार>-परोपकार समुद्र + उर्मि-समसुद्रो मिं गंगा + उदकक््ण्गंगोदक गंगा + उर्मि-शंगोमिं
सप्त + ऋषि-सप्तर्षि महा + ऋषि-महृ्षिं
ह्ल्ीण्ज तय तय तल लॉ: ऋनकअ स< >> ्ॉ्ट अअक् जनइयकयल्च््े् इन नल>-न+_-««+«-म>-»-»- «०्-नञ-ञ-+ ५ >+>--.०+न+म-->«+-०+>-+--+.नकरप»>»»नमम5
( १६ ) २--गुण
|... संधि
अ-+- ई-ए आ+इन्ण आ-+ ई+ अ+ उच््ो ञभ + ऊच्भो
अननीीनीन--....++«>
ञअ के इचण
नियम
भवा आ के परे इ वा ३ हो तो दोनो के बदले ए होता है।
अवा ओआ के परे उ वा ऊ रहे तो दोनों मिल-
आ+उत्ज्यो | कर जो होते हैं।
'आ+-ऊच्च्ो
अ+ऋचरच्भर् | यदि भवा आ के परे अ+ऋच्भर् | ऋ वा ऋ रहे तो दोनोके
स्थान में उन नम आयाम मे सा होता
अवा जा के पश्चात् इ वा ई भावे तो दोनों मिलकर, ए, उ बा ऊ आवें तो मो औौर ऋ जावे तो अर् होता है। इस संधि का नाम
गुणसधि है।
मत+- एकता-मतैकता मत - ऐक्य"-मतैक्य सदा -- एव-सदैव _महा + ऐश्वर्य-महैश्वय बछ+भोवनजलोघ | अर 7र7-- दा + भोपधि-परहोषधि परम + ओंपघन्परमौषध
३-वबृद्धि अ-+ ए-ऐ. अ-+ ऐज्ऐ आ ५६ 2३०
, आ + ऐ-ऐ' अ + ओन्मों
334 220::0:00७७॥४१७१७३७३७७३७५७५'कक७क ५४६६, अा:ब्क काका, अवाजओ केपीछे ए.. वाएऐ आवे तो दोनों
के ब्रदले ऐ होता है |
“7
अवा ओआ के पश्चात्
आ+भोल्ज्मों | ओ वा मौं रहे तो
अ+ जोंज्मों
दोनो के स्थान में भो
ग+++-+आाओोलली (बताहै।> + ओन्नओं | आता है।
( १७ )
अवा आ के पीछे ए वा ऐ रहे तो दोनो मिलकर ऐ. जोर जो वा भी आंवे तो ओ होता है| यह संधि वृद्धि संधि कहलाती है।
5--यणा उदाहरण संधि नियम अति + अल्प ८ अत्यल्प इ+अनन््य् इ बाई के पीछे कोई अति-- आचार/"अत्याचार | इ+जान््या भिन्न स्वर आवेतो प्रति-- उपकार > प्रत्युपफार | इ+उन््यु वाई के बदले य॒ नि+ऊननन््न्यून.... | इकऊन्यू होता है जो अगले *प्रति-- एक > प्रत्येक इ+एचन्-ये स्वर में मिल जाता है
जाति + ऐक्य « जात्येक्य | इ+ ऐ ये दधि +मोदन ८ दष्योदन | इ+मो बन यो ,मति + भोदाय्य 5 मत्यौदारय | इ+ मौं चन्यों
सु + अल्प ८ स्वल्प उकभनन्न्वू् यदि उ वा ऊ के परे सु+ आभआागत -> स्वागत उ+भाच्या . | भिन्न स्वर रहे तो उ अनु - इति > अन्विति ऊ+इनवि | वाऊके बदले व् होता अनु -;; एघण ८ अन्वेषण उ+एब वें है जो अगले स्वर में
गुरु+ ओदाय न्गुवोंदाय॑ | उ+ओ>वौ | मिलजाता है।
मातृ + अथ ८ मात्रा थ ऋ--अनर् यदि ऋवा ऋ के आगे पितृ+आाज्ञा८पित्राज्ञा. | ऋ+आनूरा । कोई भिन्न स्वर हो तो :. कऋवा ऋकेबदलेर आता है जो अगले स्वर में. मिल जाता है
हुस्व वा दीर्घ ई, उ वा ऋ के परे कोई भिन्न स्वर रहे तो इवा ई फे बदले य, उ, वा ऊ के बदले व् ओर ऋ वा ऋ के बदले र् होता है ओर ये व्यंजन: भगले ख्वरों में मिल जाते हैं ।
( १८ ) ५--अयादि
ने + अनत्नयन | ए+अन्भ्य् ए, ऐ और अ; भी के पीछे ने + अफञतायक | ऐ.+अच्भाय् | कोई भी स्वर आावेतो ए के पौ+भनत्पावन | ओ+अन्ू्भव् | स्थान में अय, ऐ के स्थान ' पो+अकल्यावक | औ+अच्भाव् | में अव् ओ के स्थान में आय और ओ के स्थान में आव् होता दे ।
अभ्यास १--नीचे लिखे शब्दों फो स्वर-संधि के नियमानुसार जोड़ों--- घन + अभाव प्रथन + उत्तर. रवि+ उदय सु+ जागत रीति + अनुसार मन-- एकता. गें+अछक मातृ"भाशा अनु+ अय देव + ऋषि पो+इच्र भानु + उदय २--नीचे छिखे शब्दों में स्वर-संधि अछग करो-- सूर्योदय हस्ताक्षर तृपोदाय कवीश्वर सूर्यास्त गणेश प्रीत्यथ वधूत्सव स्मेश राजर्षि इत्यादि नायक व्यंज़न-संधि दिक् + गज-दिग्गज .. पद्+ आननम्षडानन वाक् + दान-वाग्दान षट्टू + रिपु-षड्धिषु अच्-+- अंत-भर्ज॑त अप् + ज-अब्ज
अच् +- आदि--अभजादि सुप + अंत--सुबंत
४६--क, च्, ८, तू; प् के पर अनुनासिक को छोड़ कोई स्वर वा घोप व्यंजन हो तो उनके स्थान में क्रमशः वर्ग का तीसरा अक्षर होगा ।
( २६ )
वाक + सयच्लाइ्मय जगत् + नाय”"जगजन्नाय घट न सासलल्-पण्मास अप् - मयशज्भ म्मय
ड४८--क, च, ८, तू , पूं, के आगे कोई अनुनासिक व्यंजन हो तो उसके स्थान में ऋमशः: वर्ग का पॉचवोँ अक्षर होगा |
उञे-मक नाक. धालभमकाा७क, ९0:व४००७कमाए,
सत् +- आनंद ७ सदानंद. सत् + घरममज्सद्धम
जगत |- इंश-जगदीश भगवत् + भक्ति > भगवद्धक्ति
भगवत् + गीता-भगवद्वीता तत् +रूप ७ तद्गूप
उत् + घाटनलउद्घाटन भविष्यत् -- वाणी>-भविष्यद्वाणी
४९--त् के पश्चात् फोई स्रर या किसी वर्ग का तीखरा वा चौथा अक्षर मयथवा य, र, व; जावे तो तू के बदले द् होगा |
सत् -- चरित्र-सच्चरित्र तत् + टीका तद्दीका महत् + छाया ८ महच्छाया बृहत् +-डमरूप-यहडुमरू विपद् + जाल | विपजञाल उत् + छास"“उल्लास " ह ५०--त् वा दू के परे चवर्ग हो तो उसके स्थान में चबर्ग, टवर्ग हो तो टवर्ग और ल हो तो छू होता है। उत् + शिंए८उच्छिट उत्+ श्वास 5 उछवास_ तत् + हितज-तद्धित उत् +हार उद्धार ह प्श्-त् वा दु के पीछेश आवे तो त् वा दू के बदले चू और श के बदले छ होता है; और इ हो तो त्वाद् के बदले दू और ह के स्थान में घ होता है । आ+ छादन-आचछादन . 'परि + छेद ८ परिच्छेद ' / १२....७ के पहले स्तर हो तो छ के बदले उछ, होता है ।
न्दरमकृममकककक २०००करमनाामन शाउल्रमाभाम,
६ २४ 3
अल्म् + कार--अर्रंकार या सलझार
किम् + चित् - किंचित वा क्िश्वित्
सम् + तोष-संतोष वा सन्तोप
स्वयम् + भू ८ स्वयंभू वा स्वयम्भृ ।
५३---म् के परे व्यंजन हो तो अ के बदले अनुस्वार अथवा उसी बग का अनुनासिक व्यंजन होगा |
किम्-+-हा # किया स्यम् + बर # स्वयंवर । सम् + योग > संयोग सम्-+- सार ८ संसार सम्न + रक्षा > संरक्षा सम्+- हार ८ संद्ार
५४--म् से परे अंतस्थ वा ऊष्म वर्ण हो तो म् के बदले अनुस्वार आता है।
भर-+-अन > भरण राम + भयन > रामायण भूष -- भन-भुषण नार + अयन>नारायण परि + मान ८ परिमाण नर -- न--्ऋण
पुप--ऋ, रवा घ के पश्चात् न भावे ओर बीच में चाहे स्वर कवर्ग, पवर्ग, अनुस्वार अथवा य, व, द रहे तो न के स्थान में ण होता है।
है अर
अभि+सेक <- अभिषेक नि+सेघ ८
निषेध वि + समझविषम
सु + सुत्तन्छ॒षुत्त ५६--यदि किसी शब्द के आदि मे स हो ओर उसके पहले भर वा आ को छोड़ कोई स्वर आवे तो वहुधा स के स्थान में प होता है इस नियम के कई अपवाद हैं; जैसे, अनुस्वार, विसर्ग, प्रस्थान । भाकृष् + त>भाकृष पप् + य--षष्ठ तुष् + तन्ज्तुष्ट पृष्+यत्इृषठ
( २१ )
५७--ष के पश्चात् त वा थ आने पर उनके स्थान में क्रमश;
टवा ठ होता हे। अभ्यास
१---नीचे लिखे शब्दों की संधि अंग करो--
प्रतिच्छाया, सदुगुण, सच्चिदानंद, सदसद्विवेक, पुष्ट, निपिद्ध, मरण, संपूर्ण, संयम, वागीश, तब्लीन, अनुच्छेद ।
/ रे+निम्नलिखित शब्दों की संधि मिलाओ---
'उत् +नति, शरत + चंद, सम + चय, अनु + छेद, सम +वाद,
घट + ऋतु, दिकू + मंडल, तुध-+-त, श्रीमत्+मागवत, सत्+साख्र । विसग-संधि ह
नि: + चलझ्निशचल धनुल्+ टंकार>घनुष्टकार
नि; + छल-|निएछल मनः + तापन-मनस्ताप
५८--बिख्यगं के आगे च वा छ हो तो विस के बदले श् हो जाता है, वा ठहो तो ष ओर त वा थ हो तो स॒ होता है|
दुः + शासनस-दःशासन वा दुश्शासन
नि: + संदेह>निःसंदेद वा निस्संदेह
५९--विसर्ग के पीछे श, घ वास हो ता विसर्ग जैधा का तैसा रहता है अथवा उसके बदले आगे का अक्षर हो जाता है ।
उप + कालछन-ठप+काल पयः +- पानल्ूपथ;पान
रज) + कण <रज;कण अब; पतन>-भव4परतन
६०--विधर्ग के पूर्व भ हो और पश्चात् क, ख ओर प, फ हो तो विसर्ग में विकार नहीं होता । ः
नि; + फपटर-निष्कपट निः+ फलरनिष्फल
दुः + कर्मरूदुष्कर्स दु; + प्रकृति-दुष्प्रकृति
है, 0
६१--यदि विसर्ग के पूर्व ई बा उ हो ओर उसके परें क, स
अथवा प, फ हो तो विसग के स्थान में प् द्दोता है।
-फकमारिकफम्बह-# जप उाखपया पका १कनजकनमबबनक.
यशःकदा ८ यशोदा अध:+गतिल्-थवों गति तप + वनन्तपोवन तमः्गुग न तमोगुण मन; + रथश्-मनोरथ तेज:;+मयस्ते जो मय
६२--विसर्ग के पहले भ हो और पीछे कोई धोपषब्यंजन, तो भः के बदले जो होता हैं।.. ५
नि;+जन र निर्जन नि; + आाशास्ननिराशज्षा दु; + गुण-दुगु ण दु। + उपयोगरदुदपयोग नि;+बरल-+निर्बल../ आशी; +वाद"भाशीवा द
&६३--बिसगग के पहले अ; आ को छोड़ कर फोई दूसरा स्वर हो और पीछे कोई स्वर या घोप व्यंजन तो विसर्ग के स्थान में र् होता है । यदि २ के पश्चात् र जावे तो र॒ के पहले का स्वर दीर्घ हो नाता दे; जैसे नि; +- रबवलनीरव, नि; + रस--नी रस, नि; +- रोग><नीरोंग |
प्रातर + फाल्य्य्प्रात;काल अंतर + पुर-अंतःपुर
अंतर् + करण>-जंतडकरण पुनर् -- संस्कार->पुन संस्कार
&६४--अंत्य र् के पश्चात् अघोष व्यंजन भावे ता र् के बदले विस होता है | |
असन्यातस
१--नीचे छिखे शब्दों की संधि अछग करो-+-
धनुविद्या, निश्चय, निस्तार, निष्काम, अधोगति, पयोधर, मनोबल, नीरोग, दुर्दिन, दुष्फम, तेजःपु/ज, अंतःस्वेद |
२--निम्नलिखित शब्दों की संधि मिलाओ--
नि;+- उत्तर, दुः+गम, तप + वन, पुनर् +- संधि, निः+रस, नि; +- पाप, प्रायः + चित्त, अंतर + शक्ति,तेज; + पुज्ज, घनुः +- कोटि ।
तोसरा अध्याय शब्द-विचार
पहला पाठ
शब्द-भेद
काली गाय धास खाती दे | | तुम उस गाय को झट देखो । गायके पास एककुचा अभी आया। | कुचे ने उसे देखा द्ोगा | क्या तुमने कुच्े की ओर देखा है? इंश्वर गाय को दुठ्ठ कुचे से बचावे |
६५०--ऊपर लिखे वाक्य दो से अधिक शब्द से बने हें। इनमें ८गाय” “घास”, “कुत्ता”, और “ईश्वर”, ऐसे शब्द हैं जो वस्तुओं के नाम सूचित करते हैं । “गाय” एक प्राणी का नाम है “घास” एक पदार्थ का नाम दे,"“कुत्ता”एक प्राणी का नाम है ओर/ईश्वर”?'संसार के स्वामी का नाम है। वस्तु का नाम सूचित फरनेवाले शब्द को व्याकरण में संज्ञा कद्दते हैं।
स्मरण रहे कि जो पुस्तक तुम पढ़ते हो वह पुस्तक संज्ञा नहीं है, "किंतु उसका माम अर्थात्, पुस्तक” दब्द संज्ञा है।
६६---संज्ञा के सिवा वाक्य में एक ऐसे शब्द की आवश्यकता होती है जिसके द्वारा हम किसी वस्तु के विपय में कुछ कहते हैं। ऊपर के वाक्यों में “खाती है?” शब्द के द्वारा हम गाय के विषय में कुछ कहते हैं, “भाया? ओर “देखा होगा” शब्दों के द्वारा कुचे के विषय में कुछ कहते हैं और “बचावे” शब्द से ईइवर के विषय में कुछ कहते भर्थात् विधान करते हैं।- किसी वस्तु के विषय में विधान
( २४ )
करनेवाले शब्द को क्रिया कहते हैं। इसलिके “खाती”? है, “जाया” और “बचावे” शब्द क्रियाएँ हैं। ऊपरवाले वाक्यों में “देखा है?! ओर “देखो” शुब्द भी क्रियाएँ हैं क्योंकि ये “तुम? अर्थात् सुननेवाले मनुष्य के विषय में विधान करते हैं ।
वाक्य में संज्ञा और क्रिया मुख्य शब्द-भेंद हैं, क्योकि इनके बिना पूरा वाक्य नहीं बन सकता | दूसरे शब्द-मेद इन्हीं दोनों के सहायक रहते हैं। क्रिया कमी-कमी एक शब्द से बनती है, जेते, “आया” “देखो” औौर “बचावे” और कभी-कभी उसमें दा या अधिक शब्द हते हैं, “खाती हे??, और “देखा होगा?” |
६७--पहले वाक्य में “गाय” संज्ञा के साथ “काली” शब्द आया है, जो उसके अर्थ में कुछ विशेषता बताता है। इसी प्रकार “कुत्ता” संज्ञा के साथ “एक” शब्द आया है और वह उस सज्ञा के अथ में कुछ विशेषता प्रकट करता दहै। संज्ञा के अथ में विशेषता बतछानेवाक़े शब्द विशेषण कहलाते हैं। इसलिए “काठी? और “एक? शब्द विशेषण कहलाते हैं। इसलिए “कालछो” और “एक” शब्द विशेषण हूँ । चोये वाक्य में “गाय * संज्ञा के साथ “उस”? शब्द भोर छठे वाक्य में “कुत्ता? सज्ञा के साथ “दुष्ट” शब्द आया है। ये शब्द भी विशेषण हैं, क्योकि ये क्रमशः “गाय” और “कुचे” की विशेषता बताते हैं |
विशेषण जिस संज्ञाया स्वनाम की विशेषता बताता है, उसे विशेष्य कहते हैं, जेसे, “दुए कुचा” वाक्यांश में “कुचा” विशेष्य है ।
क्य में “आया है?! क्रिया के साथ “अभी” शब्द « आया है जो उसके अर्थ में कुछ विशेषता बताता है | इसी प्रकार चौथे वाक्य में * देखो? के साथ “झट”शब्द आया है जोर वह उस क्रिया के अथ में कुछ विशेपता सूचित करता है। क्रिया के अर्थ मे विशेषता ब्रतलानेवाले शब्द को क्रिया-विशेषण कहते &। पर्वोक्त वाक्य में “झर्मा? और “झट? क्रिया-विशेषण हैं, क्योकि क्रमश; “ज्ाया है?? र “देखा” क्रियाओं की विशेषता चताते हैं। जितत प्रकार का संबंध
( २५ )
विशेषण का उंज्ञा से है, उस प्रकार का संबंध क्रिया-विशेषण का क्रिया! से है। ६९--दूसरे वाक्यों में “पास? झब्द भी आया है जो “आया हे” क्रिया की विशेषता बताता है; परंतु वह क्रिया के साथ “गाय” शब्द का संबंध भी बताता है; इसलिये उसे संबंध-सूचऋ कहते हैं। इसी प्रकार तीसरे वाक्य में “और”? शब्द संबंध-सूचक हे, क्योंकि वह ७कुत्ता” संज्ञा संबंध “देखा है” क्रिया से जोड़ता दै। क्रिया के साथ संज्ञा (वा सबनाम ) का संबंध जोड़नेवाला शब्द संबंध-सूचक. फहलाता है। ७०--तीसरे ओर चौथे वाक््यों मे “तुम” मोर पाँचवे वाक्य में: ४उस” शंब्द हैं, जो क्रमशः सुननेवाले मनुष्य के नाम और “गाय” संज्ञा के बदले आए हैं। ये शब्द संज्ञाओं के बदले जाये हैं; इसलिये इन्हें स्वंनास कहते हैं । राम आया और कृष्ण गया ) राम आया, पर मोहन नहीं आया | यदि मोहन जाता